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३५ ज्योतिर्मयी "दस हजार ! उसके मकान में लोदा दो मजबूत ने छोड़ा होगा?" "कान्यकुब्ज-कुलीन हैं ?" "वे कोई मामूली कान्यकुब्ज होंगे ?" "बहुत मामूली नहीं, १७ बिस्वे मर्यादवाले हैं।" "हूँ।” बीरेंद्र सोचने लगा। "तुमचे घृणा हो गई है। जामो, अब नहीं जाऊँगा । तुम इतने नीच हो।" वीरेंद्र शहर की ओर चला गया। बारात मुरादाबाद चली ! (५) विवाह हो गया। पं० सत्यनारायण शर्मा ने बर-यात्रियों का हृदय से स्वागत-सम्मान किया । खोरे में पाँच हजार नकद दिए, और कन्या का पाँच हजार का जेवर ऊपर से बनवा दिया। विजय को सोने की चेन, जेव-बड़ो, रिस्ट बाच, साइकिल, अँगूठी और कुछ और सामान देकर खुश किश। भड़ा-छोटा 'बड़हार' हो गया। चतुर्थी के बाद कन्या के साथ बारात बिदा हुई। वर-कन्या के लिये पं० सत्यनारायणजी ने एक सेकंड- क्लास कंपार्टमेंट पहले से रिजर्वड करा रक्खा था, और लोगों के लिये इंटर-क्लास अलग । पं० सत्यनारायण हाथ जोड़कर पं० गंगाधर और कृष्ण- शंकर आदि से विदा हुए। कन्या से कहा---'बेटी, वहाँ पहुँचकर अपने समाचार जल्द देना ।" गाड़ी छूट गई।