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बात यह कि इस तरह की स्त्रियाँ समाज के काम की नहीं होती।" "अरे, तुमने तो स्वर भी बदल दिया ! "क्या किया जाय " "और जहाँ विवाह करने जारहे हो, यहो बड़ी लवी-सावित्री निकलेगो, इसका क्या प्रमाण मिला है ?" "क्वाँरी भौर विधवा में फर्क है भाई ?" यह मानता हूँ।" "कुछ संस्कृति का भी खयाल रखना चाहिए । संस्कृति से ही संतति अच्छी होती है। "अरे, तुम तो पूरे पंडित हो गए !" "अपने कुल का सषको खयाल रहता है केवहु काल कराल परै, पै मराल न ताहिं तुच्छ तलैया।" "अच्छा !" "तब तो, जी चाहता है, तुम्हारे साय मैं भी चलूँ ।" "चलो, मैंने तो तुम्हें लिखा भी था, पर तुम दुनिया की चास्तविकता का विचार तो करते नहीं, विचारों की दीवारें उठाया-गिराया करते हो।" "अच्छा भई, अब वास्तविकता का मानंद भी ले लें। कहो, कितने गिनाए ?" "दस हजार