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लिली "अच्छा; सब तो हमारे यहाँ बरतन भी साबित न रहेंगे।" तो आप कहिए । "नौ हजार लीजिए। “अच्छा, बारह हजार में पक्का।" पं० सत्यनारायण अपनी श्रधारी सँभालने लगे। "ग्यारह हजार देते हैं आप?" पं० कृष्णशंकर ने उभड़कर पूछा। "दस हजार सही, बताइए।" अच्छा पक्का ; मगर पाँच हजार पेशगी।" पं० सत्यनारायण ने काराज, स्टांप और हजार-हजार के पाँच नोट निकालकर कहा--"लोजिए, आप दोनो इसमें दस्तखत कीजिए। पहले लिखिए, पं० सत्यनारायण, मुरादाबाद, की कन्या से श्रीयुत विजयकुमार मिश्र एम० ५० के विवाह- संबंध में, जो दस हजार में मय गवहीं और गौने के खर्च के पसा हुआ है, कन्या के पिता से पाँच हजार पेशगी नकद वसूल पाया, फिर स्टांप पर वल्दिवत के साथ दस्तखत कीजिए।" पडित गगाधर गद्गद हो गए । लिखा-पढ़ी हो गई। विवाह का दिन स्थिर हो गया। तिलक चढ़ गया । तिलक के पहले समय तक विजय को ज्योतिर्मयों की याद आती रही। पर नवीन विवाह के प्रसंग से मन बट गया। फिर धीरे-धीरे, जैसा हुआ करता है, वह