कारण काम नहीं, यथार्थ ही तुम्हें उसने प्यार किया है। अच्छा, उसका पता तो बताओ।
वीरेंद्र ने नोटबुक निकालकर पता लिख लिया। फिर विजय से कहा--"तुम मेरे मित्र हो, वह मेरे मित्र की प्रेयसी है!"
दोनो एक दूसरे को देखकर हँसने लगे।
(३)
इस घटना को कई महीने बीत चुके। अब भाई की ससुराल जाने की कल्पना-मात्र से विजय का कलेजा काँप उठता, संकोच की सर्दी तमाम अंगों को जकड़ लेती, संकल्प से उसे निरस्त हो जाना पड़ता है। इसकी यह हालत देख-देखकर वीरेंद्र मन-ही-मन पश्चात्ताप करता, पर तब से फिर किसी प्रकार की इच्छा का दबाव उस पर उसने नहीं डाला। विजय इलाहाबाद-युनिवर्सिटी में रिसर्च-स्कॉलर है। वीरेंद्र बी० ए० पास कर लेने के पश्चात् यहीं अपना कारोबार देखने में रहता है। वह इटावे के प्रसिद्ध रईस नागरमल-भीखमदास-फ़र्म के मालिक मंसाराम अग्रवाल का इकलौता लड़का है।
महीने के लगभग हुआ, वीरेंद्र इटावे चला गया है। चलते समय विजय से बिदा होकर गया था।
इधर भी, तीन-चार दिन हुए, घर से पत्र द्वारा विजय को बुलावा आया है। जिला उन्नाव, मौज़ा बीघापुर विजय की जन्म-भूमि है।
उसके पिता अच्छी साधारण स्थिति के मनुष्य हैं, माँझ-