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लिली

के पैर छुए । इधर-उधर आँखें युवती की तलाश करती रही । वह न मिली। युवक दोमंजिले से नीचे उत्तरा । देखा, दरवाजे के पास खड़ी वह उसी की राह देख रही है। युवक ने कहा- "आज्ञा दीजिए, अब जा रहा हूँ !" हाथ जोड़कर युवती ने प्रणाम किया । एक पत्र युवक को देकर कहा--"जल्द दर्शन दीजिएगा ।" युवक के हृदय में एक अज्ञात प्रसन्नता की लहर उठी। उसने देखा, नील पलकों के पंखों से युक्ती की आँखें अप्सराओं-सी आकाश ओर उड़ जाना चाहती हैं, जहाँ स्नेह के कल्प-बसंन में मदन और रति नित्य मिले. हैं, जहाँ किसी भी प्रकार की निष्ठुर श्रृंखला नवोन्मेष को मुक्का नहीं सकती, जहाँ प्रेम ही आँखों में मनोहर चित्र, कंठ मैं मधुर संगीत, हृदय में सत्यनिष्ठ भावना और रूप में खूबसूरत आग है।

युवक ने स्नेह के मधुर कंठ से, सहानुभूति की ध्वनि में, कहा-"ज्योती!"

युवक निस्संकोच कुछ कदम आगे बढ़ गई । युवक बिलकुल नजदीक, एक तरह सटकर, खड़ी हो गई। सिर युवक की ठोढ़ी के पास, आँखें आँखों में मिली हुई । वस्त्र के स्पर्श से शिराओं में एक ऐसी तरंग बह चली, जिसका अनुभव आज तक उनमें किसी को न हुआ था ! अंगों से आनंद के परमाणु निकलते रहे । आँखों में नशा छा गया।

"फिर कहूँगा ।" युवक लजाकर चल दिया । याद