युवक का चेहरा उतर गया।
'आपने इस साल एम० ए० पास किया है, और अँगरेजी में। वहाँ पतिव्रता स्त्रियों की शायद पत्नीव्रत पुरुषों से ज्यादा जीवनियाँ आपने याद की!" युवती ने वार किया।
युवक बड़े भाई की ससुराल गया था। युवती उसी की विधवा छोटी साली है।
आपने कहाँ तक पढ़ा है ?" युवक ने जानना चाहा ।
"सिर्फ हिंदी और थोड़ी-सी संस्कृत जानती हूँ।" डब्बे को नजदीक लेकर युवती पान लगाने लगी।
"मैं इतना ही कहता हूँ,आपके विचार समाज के तिनके के लिये आग हैं।” ताज्जुब की निगाह देखते हुए युवक ने कहा। " "लेकिन मेरे भी हृदय के मोम के पुतले को गलाकर बहा देने, मुझसे जुदा कर देने के लिये समाज आग है, साथ-साथ यह भी कहिए ।" उँगलो चूनादानी में, बड़ी-बड़ी आँखों की तेज निगाह युवक की तरफ फेरकर युवती ने कहा- मैं बारह साल को थी, ससुराल नहीं गई, जानती भी नहीं, पति कैसे थे, और विधवा हो गई ! कई बूँद आंसू कपोलों से बहकर युवती की जाँघ पर गिरे । आँचल से आँखें पोंछ ली, फिर पान लगाने लगी।
"तंबाकू खाते हैं आप?" युवती ने पूछा।
"नहीं ।” युवक के दिल में सन्नाटा था। इतनी बड़ी, इतने आश्चर्य को, इतनी खतरनाक बात आज तक किसी विधवा