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लिली


राजेंद्र बैरिस्टर होकर विलायत से आ गया। पिता ने कहा--"बेटा, अब अपना काम देखो।" राजेंद्र ने कहा-- "ज़रा और सोच लूँ, देश की परिस्थिति ठीक नहीं।"

(८)

"पद्मा!" राजेंद्र ने पद्मा को पकड़कर कहा।

पद्मा हँस दी। "तुम यहाँ कैसे राजेन?" पूछा।

"बैरिस्टरी में जी नहीं लगता पद्मा, बड़ा नीरस व्यवसाय है, बड़ा बेदर्द। मैंने देश की सेवा का व्रत ग्रहण कर लिया है, और तुम?"

"मैं भी लड़कियाँ पढ़ाती हूँ--तुमने विवाह तो किया होगा?"

"हाँ, किया तो है।" हँसकर राजेंद्र ने कहा।

पद्मा के हृदय पर जैसे बिजली टूट पड़ी, जैसे तुषार की प्रहत पद्मिनी क्षण-भर में स्याह पड़ गई। होश में आ, अपने को सँभालकर कृत्रिम हँसी रंगकर पूछा--"किसके साथ किया?"

"लिली के साथ।" उसी तरह हँसकर राजेंद्र बोला।

"लिली के साथ।" पद्मा स्वर में काँप गई।

"तुम्हीं ने तो कहा था--विलायत जाना और मेम लाना।" पद्मा की आँखें भर आई।

हँसकर राजेंद्र ने कहा--"यही तुम अँगरेज़ी की एम० ए० हो? लिली के मानी?"

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