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२०
लिली

निकालकर देखा, बुखार एक सौ तीन डिग्री था।

अपलक चिंता की दृष्टि से देखते हुए राजेंद्र ने पूछा- "पद्मा, तुम कल तो अच्छी थी. आज एकाएक बुखार कैसे आ गया ?"

पद्मा ने राजेंद्र की तरफ करवट ली, कुछ न कहा।

"पद्मा मैं अब जाता हूँ !"

ज्वर से उभरी हुई बड़ी-बड़ी आँखों ने एक बार देखा, और फिर पलकों के पर्दे में मौन हो गई।

अब जज साहब और रामेश्वरजी भी कमरे में आ गए । जज याहब ने पद्मा के सिर पर हाथ रख कर देखा, फिर लड़के की तरफ निगाह फेरकर पूछा- क्या तुमने बुखार देखा है ?"

“जी हाँ, देखा है ।"

"कितना है ?"

"एक सौ तीन डिग्री।"

"मैंने रामेश्वरजी से कह दिया है, तुम आज यहीं रहोगे।

तुम्हें यहाँ से कब जाना हे ?--परसों न?"

"जी।"

कल सुबह बतलाना घर आकर, पद्मा की हालत कैसी रहती है। और रामेश्वरजी, डॉक्टर की दवा करने की मेरे खयाल से कोई जरूरत नहीं।"

"जैसा आप कहें।" संप्रदान-स्वर से रामेश्वरजी बोले ।

"जज साहब चलने लगे। दरवाजे तक रामेश्वरजी भी