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हिरनी स्वयं प्रहार करें। दासियाँ पकड़कर ले चली, तो रानी साहिबा को आँसुओं में देखती हुई, उसी अनिंद्य हिंदी में हिरनी क्षमा-प्रार्थना करती हुई बोली, "सरकार, मेरा कुछ कुसूर पर कौन सुनता है, उससे रानी साहिबा की सेवा में कप्तर जब पास पहुँची, उसको झुकाकर मारने के लिये रानी साहिबा ने चूसा बाँधा। हिरनी के मुख से निकला-'हे रामजी !” रानी साहिवा की नाक से खून की धारा बह चली । वह वहीं मूच्छित हो गई। हिरनी के बाल, मुख उसी खून रंग गए। डॉक्टरों ने पाकर कहा, गुस्से से खन सर पर चढ़ तब से जरा भी गुस्सा करने पर रानी साहिबा को यह बीमारी हो जाती है wwwmaunia-