यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

9 हिरनी १४१ रहता था। नौजवान था। रानी साहिबा ने उससे पुछवाया कि हिरनी से विवाह करने को वह राजी है या नहीं। वह बड़ा खुश हुआ, उत्तर में अपनी खुशी को दबाकर गनी साहिबा को खुश करनेवाले शब्दों में कहा, "सरकार की जैसी मर्जी हो, सरकार की हुकुम-अदूली मुझसे न होगी।" विवाह में घरवालों की राय न थी। रामगुलाम बागी हो गया । एक दिन उसके साथ हिरनी का विवाह प्रासाद के आँगन में कर दिया गया। हिरनी पति के साथ रहने लगी। साल ही भर में एक लड़की की मा हो गई। (४) दो साल और पार हो गए । रानी साहिबा का स्नेह, हिरनी के कन्या-स्नेह के बढ़ने के साथ-साथ, उस पर से घटने लगा। जिन दासियों की पहले उसके सामने न चलती थी, ये ताक पर थीं कि मौका मिले, तो बदला चुका लें। एक दिन रानी साहिया ताश खेल रही थीं। पक्ष और विपक्ष में उन्हीं की दासियाँ थीं। श्यामा उर्फ स्याही उन्हीं की तरफ थी । मौका अच्छा समझकर बोली- सरकार को हिरनी ने आज फिर धोका दिया ; मैं गई थी, उसकी लड़की को जूड़ी-बुखार कहीं कुछ भी नहीं।" लड़की की बीमारी के कारण हिरनी दो दिन की छुट्टी ले गई थी। रानी साहिबा पहले ही से नाराज श्रीं । अब 3