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लिली 9 भरकर, आई, यहाँ कोई भय तो नहीं। दृष्टि के सुक्ष्मतम तार इस पृथ्वी के परिचय से नहीं, जैसे शून्य आकाश से बाँधे हुए: हों जैसे उसे पृथ्वी पर उतारकर विधाता ने एक भूल की हो। उसके इस भाव के दर्शन से हिरनी' नाम, कवि के शब्द की तरह, रानी के कंठ से श्राप निकल आया था। वही हिरनी अब जीवन के रूपोज्ज्वल वसंत में कली की तरह मधु-सुरभि से भरकर चतुर्दिक सूचना-सी दे रही है कि प्रकृति की दृष्टि में अमीर और ग़रीबवाला क्षुद्र भेद-भाव नहीं, वह सभी की आँखों को एक दिन यौवन की ज्योलना से स्निग्ध कर देती है। किरणों के जल से जीवन में एक ही प्रकार की लहरें उठाती हुई, परिचय के प्रिय पथ पर बहा ले जाती है । जो सबसे बड़ी है, जिसके भीतर ही बड़े और छोटे की नाप में भ्रम है, वह स्वयं कभी छोटे और बड़े का निणय नहीं करती, उसकी दृष्टि में सभी बराबर हैं, क्योंकि सब उसी के हैं। उसी ने हिरनी में एक आशा, एक अज्ञात मुख की आकांक्षा भी भर दी, जिससे दृष्टि में मद, मद में नशा, नशे में संसार के विजय की निश्चल भावना मनुष्या को स्त्री के प्रणय के लिये खोंचती रहती है। इसी समय इंगलैंड से शिक्षा प्राप्त कर राजकुमार घर लौटे थे, और दो-तीन बार हिरनी को बुला चुके थे । रानी दूसरी दासियों से यह समाचार पाकर हिरनी का विवाह कर देने की सोचने लगी। वहीं एक कहार रामगुलाम