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लिली


"तू राजेन को प्यार नहीं करती?" आँख उठाकर रामेश्वरजी ने पूछा।

"प्यार? करती हूँ।"

"करती है?"

"हाँ, करती हूँ।"

"बस, और क्या?"

"पिता!—"

पद्मा की आबदार आँखों से आँसुओं के मोती टूटने लगे, जो उसके हृदय की क़ीमत थे, जिनका मूल्य समझनेवाला वहाँ कोई न था।

माता ने ठोढ़ी पर एक उँगली रख रामेश्वरजी की तरफ़ देखकर कहा--"प्यार भी करती है, मानती भी नहीं, अजीब लड़की है!"

"चुप रहो।" पद्मा की सजल आँखें भौंहों से सट गईं, विवाह और प्यार एक बात है? विवाह करने से होता है, प्यार आप होता है। कोई किसी को प्यार करता है, तो वह उससे विवाह भी करता है? पिताजी जज साहब को प्यार करते हैं, तो क्या इन्होंने उनसे विवाह भी कर लिया है?" रामेश्वरजी हँस पड़े।

(४)

रामेश्वरजी ने शंका की दृष्टि से डॉक्टर से पूछा--क्या देखा आपने डॉक्टर साहब?"