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हिरनी वास-स्थल को गया। बाढ़ की बातचीत में बालिका का प्रसंग भी भाया । चिदंबर उसे अनाथ-आश्रम में परवरिश के लिये छोड़ रहा है. यह सुनकर कारुण्य-वश राजा साहब ने ही उसे अपने साथ सिंहपुर ले जाने के लिये कहा ? चिदंबर इनकार करे, ऐसा कारण न था; बालिका रानी साहिबा की देख-रेख में, उन्हीं के साथ, उनकी राजधानी गई। आठ साल की लड़की रानी साहिबा की दासियों से स्नेह तथा निरादर प्राप्त करती हुई, उन्हीं में रहकर, संस्कारों से ढलती हुई धीरे-धीरे परिणत हो चली । वहाँ जो धर्म दासियों का, जो भगवान रानी से सेविकाओं तक के थे, बही उसके भी हो गए। झूठ अपराध लगने पर दासियों की तरह वह भी कसम खाकर कहने लगी, "अगर मैंने ऐसा किया हो, तो सरकार, सीतला भवानी मेरी आँख ले लें।" वहाँ सभी हिंदी बोलती थी, पर जो मधुरता उसके गले में थी, वह दूसरे में न थी ; जैसे हारमोनियम के तीसरे सप्तक पर बोलती हो । रानी साहिबा उससे प्रसन्न थी। क्योंकि दूसरी दासियों से वह काम करने में तेज और सरल थी। उसका नाम हिरनी रक्खा था। वह जिस रोज रनवास में भाई थी, तब से आज तक, उसी तरह, भरण्य की, दल से छुटी हुई, छोटी हरिणी-सी, एकाएक खड़ी होकर, सजग हग, पाव-स्थिति का ज्ञान-सा प्राप्त करने लगती है कि वह कहाँ