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खिलो बालिका साथ हो ली। उसकी अंतरात्मा उसे समझा चुकी थी कि उसके माता-पिता उस नोंद से न जगेंगे ! उसे माता- पिता को सचेत करने का इतना उद्यम पहले कभी नहीं करना पड़ा, यही उसके प्राणों में उनके सदा अचेत रहने का अटल. विश्वास हुआ। पहले चिदंबर ने अच्छी तरह उसे अपना दुपट्टा पहना दिया, फिर उँगली पकड़कर धीरे-धीरे डेरे की ओर चला, जो वहाँ से कुछ ही फासले पर था। अकाल-पीड़ितों की समुचित सेवा के लिये मदरास के पतित-पावन संघ के प्रधान निरीक्षक की हैसियत से संघ को साथ लेकर चिदंबर वहाँ गया था। (२) कुछ दिनों बाद धन-संग्रह के लिये चिदंबर को मदरास जाना पड़ा। शिक्षण-पोषण के लिये अनाथ-आश्रम में भर्ती कर देने के उद्देश से बालिका को भी साथ ले गया। वहाँ जाने पर मालूम हुआ कि राजा रामनाथसिंह रामेश्वरजी के दर्शन कर कुछ दिनों से ठहरे हुए हैं, उसे मिल आने के लिये बुलावा भेजा था। चिदंबर के पिता जज के पद से पेंशन लेकर कुछ दिनों तक राजा साहब के यहाँ दीवान रह चुके थे ; उन दिनों चिदंबर को पिता के पास युक्तप्रांत में रहकर प्रयोग-विश्वविद्या- लय में अध्ययन करना पड़ा था। अब उसके पिता नहीं हैं। संवाद पा राजा साहब से मिलने के लिये चिदंबर उनके