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9 हिरनी (१) कृष्णा की बाढ़ वह चुकी है। सुतीक्ष्ण, रक्त-लिप्त, अदृश्य दाँतों का लाल-जिह्व, योजनों तक. भीषण मुख फैलाकर, प्राण-सुरा पीती हुई मृत्यु तांडव कर रही है । सहस्रों गृह-शून्य, क्षुधा-क्लिष्ट, निःस्व, जीवित्त कंकाल साक्षात् प्रेतों-से इधर- उधर घूम रहे हैं। आर्तनाद, चीत्कार, करुणानुरोधों में सेना- । पति अकाल की पुनः पुनः शंखध्वनि हो रही है । इसी समय सजीव शांति को प्रतिमा-सी एक निर्वास-बालिका शून्यमना दो शवों के बीच खड़ी हुई चिदंबर को देख पड़ी। "ये तुम्हारे कौन हैं ?" शवों की ओर इंगित कर वहा की भाषा में चिदंबर ने पूछा। बालिका आश्चर्य की तन्मय दृष्टि से शवों को कुछ देर देखती रहकर शून्य भान से अज्ञात मनुष्य की ओर देखने लगी। चिदंबर ने अपनी तरफ से पूछा-"ये तुम्हारे मा-बाप । बालिका की आँखें सजल हो आई। चिदंबर ने सस्नेह कहा- "बेटी, हमारे साथ डेरे चलो, तुमको अच्छा-अच्छा खाना देंगे।"