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परिवर्तन विवाह से पहले महाराजा साहब ने कहला भेजा कि पाय तो समाज-सुधारक हैं, विवाह में व्यर्थ खर्च क्यों किया जाय, वही रकम जिस सार्वजनिक संस्था को आप कहें, दे दी जाय । प्रस्ताव राजा को भी पसंद आया। फिर पंडित लोग महाराजा साहब की तरफ के, जो एक पग इधर-से- उधर होनेवाले न थे, कहा, हमारे महाराज का विवाह तो उसी ढंग से होगा, जो रीति हमारे यहाँ प्रचलित है। उदार राजा महेश्वरसिंह ने यह भी मंजूर कर लिया। विवाह का दिन जहाँ तक शीघ्र किया जा सका, स्थिर किया गया। राजा साहब को महाराजा साहब के यहाँ की सभी प्रथाएँ मंजूर करनी पड़ी । इसलिये विवाह के दिन राजा साहब को अपने कुछ अादमी, रानी कामलतादेवी तथा परी के साथ महा- राजा साहब के ही मकान जाना पड़ा। राजा साहब अपनी तरफ से कोई ब्राह्मण पंडित नहीं ले गए थे, उन्हें ब्राह्मणों के मंत्रों पर विश्वास न था । मंत्रोच्चार के समय ब्राह्मणों को 'दासी-ग्रहणम्, दासी- ग्रहणम्' कई बार कहते हुए सुनकर राजा साहब चौंके, पर संस्कृत अच्छी पढ़ी न थी, सोचा, यह भी कोई रीति ही यहाँ की होगी। इस विचार से चुप हो रहे । 'कन्या-दासी- हणम् से 'दासी-ग्रहणम्' सब पूरा हो गया । प्रधान पंडित ने कहा-"राजा महेश्वरसिंहजी ने हमारे .