यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लिली सुधार के लिये सहानुभूति दिखसाई थी । इसके बाद रानी कामलतादेवी तथा कुमारी परिमल को साथ लेकर कई बार राजा महेश्वरसिंह उनसे मिल चुके हैं। माता के साथ परी भी सहमत है। कारहा, वहाँ ऐश्वर्य और सम्मान अधिक है। आज महाराजा साहब के सेक्रेटरी मिस्टर रैटलर साहब फिर राजा महेश्वर सिंहजी को निमंत्रण देने आए हैं कि रात नौ बजे कृपा कर राजा साहब सपरिवार महाराजा साहब की कोठी में दर्शन दें। सपरिवार राजा साहब महाराजा साहब के साथ भोजन कर रहे थे। और कोई न था। भोजन में राजाओं के साथ सम्मिलित हो भी नहीं सकता था ! राजा साहब ने महाराजा साहब को गौर से परी की ओर देखते हुए देखकर आशा से पुलकित होकर कहा, महाराज अगर एक संबंध बंगाल में भी. करें, तो अच्छा हो, प्रांतीय सौहार्द इस प्रकार वढ़ता रहे। "मेरी इच्छा तो है", महाराजा साहब ने परी को देखते हुए कहा । रानी कामलतादेवी ने मुस्किराकर कहा-"आप मेरी परी से विवाह कीजिए " बड़ी सभ्यता से महाराजा साहब ने कहा-"आपकी आज्ञा मुझे शिरोधार्य है।" दिन ठीक करने को एकांत में महाराजा ने आज्ञा दे दी। लौटकर राजा महेश्वरसिंह ने रानी कामलतादेवी से कहा- "पहाड़ी हूस है, परी को देखकर पागल हो गया है, हमें तो अपना मतलब गाँठना है।"