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१३२ लिली पिताजी की महान् मर्यादा जाती रहती है, क्योंकि उनके पुत्र अब दफ्तर के बाबू की जगह लेनेवाले हैं, मैं पूछती हूँ, ऐसे आदमी को रखने से फायदा ?" "फायदा क्या है ? उसको निकाल दो।" राजा साहब ने प्राज्ञा दी। रानी झामलतादेवी ने कहा-'परी के सामने पिता और पुत्र दोनों के कान पकड़कर गढ़ से बाहर कर दो।" पुरस्कार की लालसा से दो सिपाही शत्रुहनसिंह के मकान की तरफ दौड़े. परी हँसतो हुई वहीं से देख रही थी। दोनो जैसे-के-वैसे ही लौटते हुए देख पड़े। परी को साथ लेकर रानी कामलतादेवी के पास जाकर कहा, वे लोग पहले ही से फाटक के बाहर निकल गए, और सरकारी थाने में जाकर बैठे हैं। हरगोविंद से शत्रुहन कह गए हैं कि थानेदार को साथ लेकर कल चारज समझा जायँगे। ल सात वर्ष और पार हो गए। परी अब सत्रह साल की परी हो गई है। राजा महेश्वरसिंह इस समय राजा और तअल्लुकेदारों में बड़े जोरों से समाज-सुधार कर रहे हैं। संवाद- पत्रों में इस कार्य के लिये कभी-कभी उनके दिए दान की तालिका में प्रकाशित होती है, और जिस सभा में समाज की बुराइयों पर उनका भाषण होता है, लोग तालियाँ पीटकर अपनी सहानुभूति प्रकट करते हैं। देश के राजा-रईसों के बिगडैल,