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परिवर्तन सूरज का बाप आँसू पीकर रह गया । सँभलकर कहा- "लड़के को फिजून परेशान करती हैं. क्या काम है ?" "कुछ नहीं। नौकर ने कहा-'गंद धूप में फेक दिया है, और हठ है कि सूरज आकर उहाकर दे।" सूरज ने कहा-बाबू, मुझे इस तरह गेंद उठाकर देते हुए लाज लगती है। ठाकुर शत्रुहन सिंह की आँखों से आग निकलने लगी। कहा-"हम नौकर हैं, हमारा लड़का नौकर नहीं, और हम भी गेंद उठाने की नौकरी नहीं करते. तलवार बाँधने की करते हैं, जाओ, राजा की मा से कह दो।" नौकर परी के पास लौट आया। कहा--" सूरज न आवेगा, शत्रुहनसिंह बिगड़ रहा है ।” परी की आँखें लाल हो गईं, पर शत्रुहनसिंह वहाँ के सिपाहियों का अफसर था, वह भी कुछ डरती थी, इसलिये मा के पास नालिश करने चली। इधर से नौकर भी चला। परी और नौकर की बातें सुनकर, पूजा समाप्त करके थाई हुई पहले कामलता दासी, अब श्रीमती रानी कामलतादेवी, तिनककर दूत-पद राजा साहब के कमरे में गई ( राजा साहब का स्थायी निवास उन्हीं की कोठी में रहता था), और आँखों की पुतलियों को भौंहों के पास तक चढ़ाकर, एक झटका गर्दन का देती हुई बोली-ऊँहूँ, यह तो न होगा। सुना, तुम्हारी परी कभी-कभी सुरजुआ को बुलाकर खेलती है, इससे उनके w