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लिली वह उससे नहीं मिलता। पुनः वह मिडिल क्लास में पढ़ता है, परी से वह ऊँचे दर्जे में, ज्यादा पढ़ा हुआ है, इसका विचार परी नहीं करती, जो काम उससे करवाती है। उस के कारण बह लाज से मुरझा जाता है। इसलिये नहीं जाता, प्रायः परी के निकलने के समय कोठी में नहीं रहता। उधर लोगों से यादर तथा सम्मान प्राप्त कर, परी के स्वभाव में, सम्मान्य राज- कुमारीवाला गुरू गहन भाव, इतनी ही उम्र में दूब की जड़ की तरह फैजने लगा। एक सूरज को छोड़कर और सब उसकी इज्जत करते हैं, उसकी आज्ञा मानते हैं, उसके नौकर । सूरज परी का शासन नहीं मानता, ऐसा विचार उठते ही वह सूरज को बुलवाती है। पर सूरज उस समय या तो गढ़ के बाहर किसी सहाध्यायी मित्र के साथ पढ़ता होता है या स्कूल गया होता है या खेलने के लिये निकला होता है। ठीक बारह बजे दोपहर को, सोचकर इतवार के दिन, परी नीचे उत्तरी । सूरज उस समय पिता के साथ भोजन कर रहा था । एक नौकर चुपचाप दौड़ाकर देख आने के लिये भेजा । लौटकर नौकर ने कहा "है, भोजन कर . "अभी ले पाओ, न भाए, तो कान पकड़कर ले आओ। हुक्म हुआ। नौकर दौड़ा हुआ गया, और सूरज के बाप । से कहा कि रामा बहुत जल्द सूरज को बुलाती हैं, भेज दो, नहीं तो दिखाने के लिये कान पकड़कर ले जाना होगा।