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पद्मा और लिली


को उसके सामने कह सकते हैं? बतलाइए, हिमालय की तरह अटल सुन लिया, तो इससे आपने क्या सोचा?"

आग लग गई, जो बहुत दिनों से पद्मा की माता के हृदय में सुलग रही थी।

"हट जा मेरी नज़रों से बाहर, मैं समझ गया।" रामेश्वरजी क्रोध से काँपने लगे।

"आप ग़लती कर रहे हैं, आप मेरा मतलब नहीं समझे, मैं भी बिना पूछे हुए बतलाकर कमज़ोर नहीं बनना चाहती।" पद्मा जेठ की लू में झुलस रही थी, स्थल-पद्म-सा लाल चेहरा तमतमा रहा था। आँखों की दो सीपियाँ पुरस्कार की दो मुक्ताएँ लिए सगव चमक रही थीं।

रामेश्वरजी भ्रम में पड़ गए। चक्कर आ गया। पास की कुर्सी पर बैठ गए। सर हथेली से टेककर सोचने लगे। पद्मा उसी तरह खड़ी दीपक की निष्कंप शिखा-सी अपने प्रकाश में जल रही थी।

"क्या अर्थ है, मुझे बता।" माता ने बढ़कर पूछा।

"मतलब यह, राजेन को संदेह हुआ था, मैं विवाह कर लूँगी--यह जो पिताजी पक्का कर आए हैं, इसके लिये मैंने कहा था कि मैं हिमालय की तरह अटल हूँ, न कि यह कि मैं राजेन के साथ विवाह करूँगी। हम लोग कह चुके थे कि पढ़ाई का अंत होने पर दूसरी चिंता करेंगे।" पद्मा उसी तरह खड़ी सीधे ताकती रही।