यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिवर्तन ७ मुट्ठी में तब भी कमल बँधा हुआ था। पेट से पानी निकाला गया । मुंह का गया । साँस चलने लगी। (२) कई साल बीत गए । परी अब दस साल की है। पुस्तकों के साथ नृत्य-गीत की भी शिक्षा से दी जाती है। माता के संस्कार चापल्य की उस विद्युन में प्रवेश करने लगे हैं। उसकी माता एक समय कलकत्ते की सुदरी वेश्या थी ! अब राजा महेश्वरसिंह की रक्षिता है ! यह कन्या राजा साहब के औरस से पैदा हुई है। इसका नाम है परिमल कुमारी। स्नेह से नाजा साहब तथा उसकी मा परी कहते हैं। परी की मा के नाम गजा साहब ने एक अलग जायदाद लिख दी है। बड़े-से अहाते के अंदर चारों ओर से जल से भरी खाई है, बीच में कोठी, शिव मंदिर, बगीचा फुलवाड़ी, राजपथ आदि प्रासाद के अनुरूप और और सब कुछ । परी की माता शान में रानी साहबा से बढ़कर रहती है। परी का खर्च कुँवर साहब से ज्यादा है। सूरज ड्योढ़ी के जमादार शत्रुहनसिह का लड़का है। शत्रुहनसिंह किसी तरह नौकरी से गुजर करते हैं। ऐली जगह जाकर नौकरी की है, जहाँ पास-पड़ोस का कोई आदमी नहीं। इसलिये एक प्रकार उनका जीवन अपने कर्तव्य और पुत्र-स्नेह में ही पार होता है । सूरज इस समय मिडिल क्लास का विद्यार्थी है। पी के स्नेह-लेश रहित तेज स्वभाव के कारण