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१२४ लिली कुमार प्रसन्न थे। एक गजल मन-ही-मन गुनगुना रहे थे। इस गजल को कैनिंग कॉलेज के विद्यार्थी लखनऊ का नैशनल साँग ( जातीय गीत ) कहते हैं । गजल है- अगर किस्मत से लैजा के गले का हार हो जाता, नमाने-भर की नजरों में खटकता, स्वार हो जाता।" श्रादि-आदि। शंकर को मालूम हो गया कि या तो कल इनकी किस्मत दरअस्ल लड़ गई, या आज अब फिर चिट्ठी में कल कहीं मिलने की आज्ञा पहुँची है। मुस्किराता हुआ भीतर गया, और बड़ी उत्सुकता से पूछा--"क्यों भई, कल मुलाकात तो हो गई ?" "किसी ने ठीक कहा है।" प्रेमकुमार बोले-"जो मजा इंतजार में पाया, वह वस्ल में न पाया।" "तो क्या अभी इंतजार हो चल रहा है ?" कुछ तअज्जुब से शंकर ने पूछा। "बात यह हुई कि कल मैं पहले शो में गया, वह दूसरे में भाई। इसीलिये मुलाकात न हो सकी। बड़ा वाला देकर चिट्ठी लिखी है । देखो।" प्रेमकुमार ने चिट्ठी बढ़ा दी, शंकर पढ़ने लगा। लिखा प्यारे प्रेम, कल दूसरे शो में मैं गई, पर तुम नहीं थे। यह कैसी बात ! क्या तुम मुझसे नाराज हो गए ? मुझे क्षमा करना। तुम्हीं सोचो,