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१२२ लिली भी मुझे देखा है। सबसे ज्यादा मैं किसकी तरफ खिंचा था ! क्या वही है-वह गोरी गोरी लड़की ! पर उधर से तो शायद किसी बेहूदे की दी गाली की आवाज आई थी, किसी कम- बखत ने यों ही छेड़ दिया होगा।" खेल को एक घंटा हो गया। पर प्रे मकुमार को मालूम नहीं कि क्या-क्या हो गया। केवल शांति के ध्यान में तन्मय हैं। घंटी बजी। हाफ टाइम हुआ। बत्तियाँ जल गई। प्रकाश में ऊपर-नीचे, कई जगह, सुदरी-से-सुदरी युवतियों को बैठे हुए देखा । पर ऐसी हालत में कहाँ जायँ ? किसे शांति समझे ? जो सबसे खूबसूरत है। गौर से देखने लगे। जिससे निगाह लिपट जाती, प्रकाश में उज्ज्वल आँखें, कोट, कट, चिबुक, मुख उसी के अपूर्व सुंदर लगते हैं । जब जिसे देखते, तब उसे ही शांति समझने लगते हैं। कैसी विपत्ति है ! इतनी युव- तियों में कौन सबसे सुंदरी है. निर्णय करने में मन सक्षम नहीं। जितनी हैं, उतने रूप के मुख हैं-गोल, लंबे, चकले, सम, सभी सुंदर हैं, सभी निर्दोष । इनमें शांति कौन हो सकती है? मेहनत करते-करते मन थक गया। रूपों को देखते रहने के लिये वह राजी है, पर शांति के निर्णय के लिये पूर्ण श्रांत। उसने युक्ति दी--"इन्हीं में शांति होगी। हर स्त्री अपने ही रूप को सबसे सुदर समझती है। यदि वह वास्तव में रूपवत्ती है भी ; इसलिये खेल समाप्त होने पर रास्ते पर हरएक को देख लेना