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प्रेमिका-परिचय "चे किसी खानदान की जान पड़ती हैं !" शंकर ने बढ़ा- कर कहा। जरूर, यह काट-छाँट किसी फटीचर घर की लड़की की हो ही नहीं सकती। खानदानी घर की लड़की की मिसाल दूब से दी जाती है, जो बारह साल धूप में झुलसही रहने पर भी दिल से गीली रहती है। इसीलिये ज्ञान से बची रहती है। किसी ने जरा-सा पानी डाला, या आसमान से चार वूद पड़ी कि चौगुनी हरियाली से लहरा-लहराकर पानी डालनवाले को तारीफ करती रहती है। इस तरह उसकी आँख ठंडी कर फौरन बदला चुका देती है।" "बहुत दुरुस्त कहते हो | क्या सिनेमा जाने का विचार है ?" आग्रह जाहिर करते हुए शंकर ने पूछा। "न जाने की क्या बात हुई ? अगर न्योता और वह भी भले घर का, किसी को मिले, और वह न जाय, तो इससे बड़ी मेरे खयाल से दुनिया में दूसरी बेहूदगी है ही नहीं।" आईने को सामने की मेज पर रखकर सेफ्टी रेजर में नया ब्लेड लगाते हुए प्रेमकुमार ने कहा। "चाहिए जरूर जाना । तबियत मेरी भी होती है कि जब तुम मिल लो, तब एक बार उनके दर्शन करूं। अगरेजी में कविता ज़रूर लिखती होंगी।" "हाँ, दिल एक सच्चे शायर का है। हर सेंटेंस चोट करता