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5 पत्ता बताने का पुरस्कार तुमसे कुबूल करवा लू, पर मेरो मा साथ थी, इसलिये तुमसे मिल नहीं सकती थी। पर क्या तुम इतना सोच ले सकोगे कि मैं कितनी बार, कितनी तरह, आँखों से, दिल से, गले से और प्यार से तुमसे मिल चुकी हूँ ? मैं वही हूँ, जिसे देखकर तुम चौंके थे. मेवी मौन पुकार सुनकर, मुझे देखकर खड़े हो गए थे, फिर उदास होकर चले गए थे। तुम समझो कि अपनी चाहनेवाली के दिल में कितनी आग तुम फूक गए हो । वह अपने प्यार के असली प्रेम की परीक्षा कर न मिल सकने के कारण कितना तड़प रही है ! माह ! तुम्हें इतना कष्ट अपनी शांति के लिये स्वीकार करना पड़ा! पर शांति तुम्हें मिलेगी । वह तुम्हारे ही पास रहती है। तुमसे जुदा हो जाय, तो उसकी हस्ती मिट जाय तुम्हें अवश्य-अवश्य तुम्हारी शांति मिलेगी। कल एलफिस्टन-सिनेमा जरूर-जरूर आने की कृपा करना। हिवेट रोड, लखनऊ तुम्हारी ४-४-३२ शांति मुस्किराकर शंकर ने कहा-'यार, इनके पत्र में तो पूरी कविता रहती है ! "हाँ, काफी पढ़ी-लिखी जान पड़ती हैं। अँगरेजी बड़े काट की लिखती हैं।" आत्मगौरव को छिपाने का प्रयत्न करते हुए प्रेमकुमार ने कहा-“जब मा साथ हों, तब केसे कोई खुले दिल से बातचीत करे।"