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प्रेमिका-परिचय "तो कहो. कल वादा-खिल्लाकी रही । मैं तो पहले से तुम्हें सचेत कर रहा था कि कहीं किसी ने मजाक न किया हो। पर तुम भी ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे सबको युधिष्ठिर का अवतार समझ लेते हो।" "मेरी भादत है, मैं अपनी तरह दूसरे को भी तहजीब-पसंद भला आदमी मान लेता हूँ। और लखनऊ में, खासकर पढ़ी- लिखी लड़कियों में ऐसी बेहूदा भी रह सकती हैं, मैं कयास में नहीं ला सकता पूरी गुस्ताखी की निगाह देखते हुए शंकर ने कहा--"तब तो बड़ा धोका हुमा । सारा मजा किरकिरा कर दिया !” सामने चिट्ठीरसा पाता हुआ देख पड़ा। प्रेमकुमार उसी पर दृष्टि जमाए हुए थे। वह भी उन्ही की तरफ बढ़ रहा था। पास आ एक लिफामा दिया । खोलकर पढ़कर प्रेम कुमार प्रसन्न हो गए : कहा-'देखो, हम लोग गलती में थे। देखो, कितनी अच्छी साफ दिल की तस्वीर है।" शंकर चिट्ठी लेकर पढ़ने लगा। लिखा है- प्राणेश प्रेम, तुम मेरे लिये कल कित्तले परेशान थे! जब जानवरों के धेरै-धेरै घूमते हुए अपनी शांति की खोज में व्याकुल हो रहे थे, तब मैं अपनी मा के साथ बैंड-स्टैंड के सामनेवाले मैदान में खड़ी उधर से तुम्हें जाते हुए देखकर हँस रही थी। जी चाहता था, दौड़कर तुम्हारी शांति का पता दे दूँ, और पहले