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5 - साड़ी में लिपटी, लपट-सी उठती, उनकी तरफ आती हुई देख पड़ती है, पूरे त्राब से दो-एक कदम उल की तरफ बढ़ जाते हैं। बस, उसके साथ की सखी या आमियों की आलोचना पहुँचतो है-कैसा अहमक है, अंवा कहीं का" बस, पैर रुक जाते, आशा दूसरी तरफ़ फेर देती है। पूरे चार बटे तक बाग्न में चक्कर लगाते रहे । दो-तीन बार ताँगेबाला आ-पाकर, पूछ-पूछकर लोट गया। जहाँ कहीं बैठा महिलाएँ बातचीत करती हुई देख पड़ीं, यह देर तक उनके चारों तरफ़ कावे लगाते रहे। धीरे-धीरे बारा निर्जन हो गया। यह फिर भी बारहदरी के चारों ओर टहलते रहे । शांति न मिली। शांति खोकर शिथिल-देह तांगे पर आकर बैठे, धौर होस्टल आ चुपचाप लेद रहे। दूमरे दिन शंकर ने खबर लेने की गरज से भाकर कमरे में प्रेमकुमार का मुरझाए बैठे हुए देखा। यह प्रेमकुमार के प्रेम का खुमार न हो, ऐसा खयाल कर चेहरे की तरफ तारीक की निगाह से देखते हुए पूछा-"क्यों भई, कल पहली पहचान- वाली शाम अच्छी तो कटी ?” पूछकर बगल में बैठ गया। "हिंदोस्तानी सबसे पहले इसीलिए बदनाम हैं कि वादे के हजार पीछे दो मी पक्के नहीं निकलते। तभी तो गले से गलामी छूटती नहीं । ऐसी-ऐसी गंदी आदतवाले अगर चाहे कि अपना सुधार सामाजिक या राजनीतिक कर लें, तो क्या खाक करेंगे ?" भुमलाए हुए प्रेमकुमार बोले ।