. । प्रेमिका परिचय ११५ हो गया है। काले रंग पर पाउडर की सफेदी देखने वालों की आँखों में गजब ढाती है। "तुम हँसते क्यों हो ?" नाराज होकर प्रेनमार ने पूछा। "इसलिये कि तुम जो कुछ कह रहे हो, इस में कहीं तिल रखने की भी जगह नहीं है तो क्या जानोगे ही ?" "जाना मेरा फर्ज है। प्यारवाले कलेजे मोम से भी मुलायम होते हैं, जरा-सी आँच नहीं सह सकते, विधलकर खत्म हो जाते हैं। तुम्हें इसका कुछ पता तो है ही नहीं" "ठीक कहते हो। मुझे कहीं से ऐसा न्योता आ जाय, तो पलले तो जाने की हिम्मत न हो, अगर जी कड़ा करके जाऊँ, तो मिलने के वक्त भगवान जाने क्या हो ! सरस्वतीदेवी शायद ही जीभ तक पहुँच सकें।" प्रेमकुमार हँसने लगे। बोले-"Face is the index of mind (चेहरा मन का सूचीपत्र है)। तुम्हें कहीं से न्योता मिल भी नहीं सकता । तुम जरा यह ब्राह्मणों को पोंगापंथी छोड़ो, तो कुछ दिनों में तुम्हें आदमियों से मिलने लायक बना दूं।" शाम को बनारसी-बाग़ में. एक तरफ ताँगा खड़ा कर, हिरन, गैंडा, चीते, शेर, चिड़िया, शुतुरमुर्रा, कँगारू, बाघ, भालू, भेडिए, गधा और जेब्रा आदि के घेरे-धेरे, पिंजड़े पिंजड़े प्रेम- कुमार चक्कर मारते रहे । प्रिया को वह खुद पहचानने वाले नहीं, प्रिया द्वारा पहचाने जानेवाले हैं. इसलिये जो भो हसीन, नवीन
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