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“दैन " गर्व-पूर्वक प्रेमकुमार ने सर उठाकर कहा- "तुलसे में कई बार कह चुका कि और कुछ नहीं, अपना चेहरा भले आदमी की तरह सुधार लो, पर तुम पूरे गदार ही रहे।" "लेकिन कहाँ इसने तुम्हें देखा होगा ? मुझे तो कभी-कभी बड़ा तज्जुन-सा लगता है।" "कहाँ देखा होगा ! मैं जहाँ-जहाँ जाता हूँ, वहीं-वहीं से कहीं देखा होगा, फिर कुछ दूर चलकर, खुद ताँगे से उतरकर ताँगेवाले को पता पूछ पाने के लिये कह दिया होगा।" "अच्छा ! ऐसा भी होता है ?" "अरे मूर्ख ! लखनऊ है । फिर जब दिल की लगती है, तब दिल के खुदा रास्ता भी बंदे को बता देते हैं। मुमकिन दूसरी तरह पता लगाया हो। किसी गर्ल्स-कॉलेज की लड़की जान पड़ती है। कॉलेज की लड़कियों में मेरी पहचान काफी है।" "लेकिन हरएक तुम्ही से स्वयंवरा होती है !" "मुझसे नहीं देखो, इधर देखो, इस रूप से होती है, यह शाही शान लखनऊ में दूसरी जगह न पाओगे।" बाबू प्रसकुमार की तरफ एक बार देखकर शंकर खूब प्रसन्न होकर हँसा । प्रेमकुमार कायस्थ हैं । बाल और चेहरे के रंग में बहुत थोड़ा-सा फर्क है। तेल, सावुन, पाउडर और सेफ्टी रेजर की दैनिक रगड़ से मुँह का ता मैल छुट गया है, पर चमड़े का स्याह रंग वार्निशशुदा बूट की तरह और चमकीला 1 1