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लिली मंजिल तय हुई।" शंकर की नसों का खून फिर तेज बह चलता है। बेचारा पलकें दबाकर, रीढ़ सीधी कर सँभलता और दस- पाँच दिन बिगड़े हुए मन को सुधारता है, तब तक एक फिर नई खबर आ पहुँचती है। इसी तरह उसने तीन साल पार किए। पतिव्रता स्त्रियों के तीसरे कोठे से चौये तक उतरने को कभी उसे हिम्मत नहीं हुई । सिर्फ एक दका आजमायश की थी। प्रेमकुमार धीरे-धोरे प्रेमिका-परिचय में सूक्ष्म से स्थूल होने लगे। पहले केवल अपने व्याख्यान के प्रभाव से खींचने के उद्योग में थे, अब अपने नेसर्गिक मुख के लिखे प्रमाण भी पेश करने लगे। शकर उनसे सुन चुका था, किस तरह कुमारियों तथा महिलाओं से आँखें मिलाकर बातचीत की जाती है। पावराच कहाँ तक शिष्ट भौर अलकाज कैसे-कैसे, कौन-कौन-से खास तौर से प्रयोग में आते हैं। एक राज एकांत में अपने ही क्लास की एक छात्रा से आजमायश के लिये उत्तरकर बुरी तरह ऊत्त हुआ। इसके एक संबोधन-मात्र से जो आग उसकी आँख से निकली, फिर रस्टिकेटेड होने के डर से इसने किसी मिस की तरफ आँख नहीं उठाई। (२) आज एक पत्र लेकर फड़कते हुए प्रेमकुमार शंकर से मिले, और लिफाफा-सहित शंकर के पास बिस्तरे पर फेककर