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पद्मा और लिली


"जी नही।"

"तुम्हारा विचार क्या है?"

"आप लोगों से आज्ञा लेकर बिदा होने के लिये आया हूँ, विलायत भेज रहे हैं पिताजी।" नम्रता से राजेंद्र ने कहा।

"क्या बैरिस्टर होने की इच्छा है?" पद्मा की माता ने पूछा।

"जी हाँ।"

"तुम साहब बनकर विलायत से आना और साथ एक मेम भो लाना मैं उसकी शुद्धि कर लूँगी।" पद्मा हँसकर बोली।

आँखें नीची किए राजेंद्र भी मुस्किराने लगा।

नौकर ने एक तश्तरी पर दो प्यालों में चाय दी--दो रकाबियों पर कुछ बिस्कुट और केक। दुसरा एक मेज़ उठा लाया। राजेंद्र और पद्मा की कुर्सी के बीच रख दी, एक धुली तौलिया अपर से बिछा दी। सासर पर प्याले तथा रकाबियों पर बिस्कुट और केक रखकर नौकर पानी लेने गया, दूसरा आज्ञा की प्रतीक्षा में खड़ा रहा।

"मैं निश्चय कर चुका हूँ, ज़बान भी दे चुका हूँ, अब के तुम्हारी शादी कर दूँगा।" पंडित रामेश्वरजी ने कन्या से कहा।

"लेकिन मैंने भी निश्चय कर लिया है, डिग्री प्राप्त करने से पहले विवाह न करूँगी।" सिर झुकाकर पद्मा ने जवाब दिया।

"मैं मैजिस्ट्रेट हूँ बेटी, अब तक अक़्ल ही की पहचान