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११० लिली लखनऊ भेजा है। सुयोग्य पुत्र पिता की ही तरह धर्म की रक्षा में जितना पटु, हर्च में उत्तना ही कटु है। पीछे पूंछ-सी मोटी चोटी, कई पंच के बाद बाँधने में एक कौशल, खोलने पर बाल बल खाते हुए ! कहता है, इलेक्ट्रिसिटी शरीर में प्रिजर्व करने का सबसे पहले यह आर्यों का निकाला हुआ तरीका है। एक समय वह प्रेमकुमार के साथ था। अब दो साल आगे, शाइनल एम० ए० में है। सीन साल से बाबू प्रेमकुमार इसे अपने रास्ते पर सभ्य करने का परिश्रम कर रहे हैं. पर यह अब तक सूरदास की काली काँवर सिद्ध हो रहा है। जिस प्रकार बाबू प्रेमकुमार मुसलमान-सभ्यता के ऊँचे फाटक से आदमियों के साथ जानवरों को निकालते रहते हैं, उसी प्रकार शकर आर्य-सभ्यता के संकीर्ण दरवाजे के भीतर ब्राह्मणों के सिवा दूसरी जाति को नहीं पैठने देता। इसी विरोधी गुण के कारण प्रेमकुमार प्रायः उससे अपने प्रेम की बातें कहा करते हैं। मतलब, कब उसे पिघलाकर अपने रास्ते वहाँ ले जाय । मौसिम बदलने तक प्रेमकुमार की दो-तीन रंगीन प्रेम की घटनाएँ बदल चुकती हैं, तब तक वह बराबर अपना मालकोस गाकर शंकर की शिला में वैजूबावरे के हाथ में मंजीरे छोड़ना चाहते हैं। नैसर्गिक प्रकृति से प्रेमकुमार को भौतिक प्रकृति चर्चा में शंकर को अधिक रस मिलने लगा, क्योंकि यह और भी शीव बालनेवाली, और भी आकर्षक, मनुष्य के स्वभाव के और भी निकट है, पर उसकी