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प्रेमिका-परिचय M पाए थे, चौक इसी मतलब से जाया करते हैं, इसीलिये किताबों को तलाक दे दिया है। सर में ऐंगल कट इँगलिश फेशन बाल, पैरों में बूट, आज के यही दो चिह्न; बाकी अनकन, पाजामा, टोपी, चाल-दाल और गुलाबी उर्दू हिंदोस्तानी एकेडेमी की नेशनल ड्रेस और लिंगुना-इडिका से चायाँ होती हुई। अंग- रेजी बंदरगाहों से दोस्तों को नवाबी गुजिन्दानों में लाकर छोड़ते और हर तरइ हवा खिलाकर कबूल करा लेते हैं कि सिवा नवाबी सभ्यता के चिकारे के विश्व-सभ्यता का कोई भी बाजा मनुष्य के गले से हूबहू नहीं मिल सकता, अँगरेजी कार्नेट तो गधे को धुवकार है। ऐसे गुणों से बाबू प्रेमकुमार छात्रों की आँख-आँख भर रहते, गले गले से फिरते हैं। खास बात यह कि क्लास की छात्राओं से, निषेध की ऊँची चारदीवार छाया- वादी ढंग से अनायास पार कर, प्रायः मौनालाप किया करते हैं, लिहाजा विद्यार्थी प्रतिक्षरण इनकी तरफ देखने से विरत नहीं होते। छात्राओं को निश्चल मौनष्ट में छात्रगण अनेक प्रकार की चपलता सोच लेते हैं, और खुद-बखद बातचीत के कच्चे सूत से बाबू प्रेमकुमार को मजबूत बाँध देते हैं। होस्टल में प्रेमकुमार की बगल में शंकर का रूम है। शंकर ब्राह्मण का लड़का है, अँगरेजी पढ़ता हुन्मा भी पीढ़ियों के संस्कारों की पूरी रक्षा करनेवाला । साबुन और सुरती का कारखाना खोलकर पिता ने कई लाख रुपए पैदा किए हैं। पुत्र को धर्म रक्षा के साथ अँगरेजी-शिक्षा प्राप्त करने को