यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रेमिका-परिचय ( (१) बाबू प्रेमकुमार कैनिंग कॉलेज, लखनऊ में बी० ए० क्लास के विद्यार्थी हैं । मेस्टन होस्टल में रहते हैं। इस समय लखनऊ की बादशाहत अँगरेजी हुकूमत में बदल गई है, पर उन्हें बादशाह-बारा की ही हवा लग रही है । चमन, बहार, गुल और बुलबुल के परिस्तान में पैर रखते, सैर करते हैं । उर्दू शायरी का अजहद शौक, इश्क का नाच उठाते हुए चलते, पलकों पर एक सदी पहले का स्वप्न । उर्दू के खुद भी कुछ अशआर लिखे हैं, कभी-कभी हौज की बगल में बैठकर पढ़ते हैं । होस्टल के मुशायरों में सबसे ज्यादा चंदा देते, हिंदी के ज्ञान में अक्षर- परिचय भर, पत्रिका में शेर खोज-खोजकर पढ़ते हैं। तारीफ़ . उसी पत्रिका की करते हैं, जो हिंदी अक्षरों में उर्दू के शेर छापती है। मीर, गालिब, जौक आदि के दीवान-के-दीवान बरजवान याद, दारा को उस्ताद मानते हैं । होस्टल के छात्र उन्हें नवाब साहब कहते हैं। यों वहाँ दो-एक को छोड़कर सभी नव्वाब हैं, पर एक दर्जे मैं पाँच साल झैल होकर शिकस्त न खानेवाले बाबू प्रेमकुमार इज्जत की सल्तनत में बढ़ गए हैं। घर के अमीर हैं, कहते हैं, तहजीब सीखने के लिये लखनऊ