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लिली स्वगवास का हाल तो कहा, पर वह भगवान रामचंद्रजी से रुपया माँगने के लिये चित्रकूट आया हुआ है, और इसी उद्देशः से नग्न है, यह कुछ न कहा। उसी रात को सोते हुए उसने स्वप्न देखा, उसका वही मित्र सूर्य की तरह प्रकाशवान , श्यामलाम, धनुर्धर साक्षात् रामचंद्र है, हंसता हुआ कह रहा है, तुमने अर्थ के लिये बड़ा परिश्रम किया, मैंने तुम्हें दिया। इसी समय आँखें खुल गईं । देखा, उसका युवक मित्र उठ बैठा है, ठीक ब्राह्ममुहूर्त है। युवक ने कहा, रामकुमार. मैंने आज बड़ा खराब स्वप्न देखा, देखा कि तुम एक नदी तैरकर पार कर रहे हो, पर बीच धास में पड़कर बहे जा रहे हो, तुम्हें बचाने के लिये मैं भी नदी में कूदा, तब न वहाँ पानी था, न तुम, घबराकर उठ बैठा। "दूसरे दिन रामकुमार को को-स्टेशन पर ले जाकर उसने घर तक का टिकट कटा दिया। प्रयाग उतरकर नौकरी की तलाश में पूछताछ करता हुआ वह 'नवयुग' प्रेस में गया, वहाँ चिट्ठियाँ लिखने के लिये एक क्लर्क की आवश्यकता थी, जगह बीस रुपए की। उसकी बातचीत से मालिक को दया आ गई, उसे रख लिया। "वहीं से उसने पढ़ना शुरू किया. और साल ही भर में एक उपन्यास लिखा, और मुफ्त छापन को दे दिया। उपन्यास की भाषा बड़ी सजीव थी। भाव बिलकुल नए । लोगों को बहुत पसद पाया । खूध बिका । नौकरी छोड़ दी। दूसरे साल । 1