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अर्थ उसने हाथ फैलाया था, वह नीच जाति का मनुष्य था। उसके यहाँ किसी साधु ने भोजन-भिक्षा नहीं ली। उसके संस्कार भी ऐसे बन गए थे कि उसे भोजन देते हुए संकोच हुअा, गाँव के ऊँचे कुलवालों से डरा, प्रणाम कर भक्ति-पूर्वक उसने कहा, महाराज, भाप उस तरफ जाइए, उधर ब्राह्मणों के मकान हैं। रामकुमार उसी तरफ चला । कुछ दूर पर एक आदमी बैठा था. देखकर रामकुमार ने पूर्ववत् अंजलि फैला दी। "इसी समय, 'अरे रामकुमार ! तुम्हारा यह हाल !!' कहकर वह युवक ऊँचे स्वर से रोने लगा। अब रामकुमार का भी ध्यान उसकी वरफ गया। उसने देखा, युवक उसका मित्र है। जब वह पिता के साथ परदेश में रहता था, तब वहाँ यह युवक भी अपनी बहन के पास जाकर कुछ साल तक ठहरा था। दोनो चनिष्ट मित्रता के पाश में बँध चुके थे। "परिचय के पश्चात् रामकुमार का मन नीचे इतर चला । उसे लाज लगने लगी। युवक एक धोती आप-ही-आप ले अाया, और देकर कहा कि इसे पहनकर यहीं कुछ दिन रहो, और अपने समाचार कहो। उसकी स्नेहमय मैत्री का दबाव राम- कुमार हटा न सका। धोती पहनने लगा ! गाँव के कुछ लोग एक टक यह स्नेह-संयोग देख रहे थे। बाद को युवक से उन्हें मालूम हुआ, यह भले घर का लिखा-पढ़ा लड़का है, भक्ति के आवेश में इसने ऐसा किया है। "जलपान तथा भोजन समाप्त कर युवक ने अपने पिता के