यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लिली जीवनी को वह अंश याद आया, जहाँ लिखा है, महावीर-रूपी तोते ने कहा है- चित्रकूट के घाट पै मह संखन की भीर; तुलसिदास चंदन विसैं, तिलक देव रघुवीर । इसके बाद ही शुकदेव की याद आई। "मन में फिर शंका हुई, वो क्या अभी-अभी जो कुछ मैंने देखा, यही राम हैं ? फिर सुन पड़ा-हाँ-हाँ ! आँख उठाकर देखा-'टेंट करता हुआ सुश्रा उड़ गया। "फिर मन चिरकाल से अभ्यस्त अज्ञानवाले घर में जाना ही चाहता था कि उठ-उठ' की आवाज़ आई। फिर कर देखा, तो एक कठफोरा दूसरे महुए की सूखी डाल में खटाखट चोंच मार रहा था। "इस समय कुछ चरवाहे बालक सामने श्रा, हाथ जोड़कर बोले, 'महाराज, गाँव जाइए । पास ही, वह देख पड़ता है। "रामकुमार उठकर खड़ा हो गया । भूख लग पाई । भिक्षा की इच्छा हुई । गाँव की ओर चला ! मन आज की विश्व- प्रकृति के अद्भुत सत्य-परिचय में तन्मय था, स्वभाव एक सरल बालक का बन रहा था। लज्जा लेश-मात्र न थी। घर-द्वार, पेड़-पौदे छायामय दिखाई दे रहे थे। उनका सत्य उसी के पास सिमटा हुआ था। गाँव पहुँचकर, एक द्वार पर खड़ा हो मौन अंजलि फैला दी । उसे अब कोई आवश्यकता नहीं मालूम दी कि यह किस जातिबाले का घर है, जोंचकर मिक्षा ले। वह बाहरी दुनिया को इतना कम देख रहा था। जिसके द्वार पर