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अर्थ क्लाति और भूख से बिलकुल मुरझा गया था। मन इतने उच्च स्तर पर था कि उसे अपने नग्न शरीर के लिये अब बिलकुल लजा न थी। प्रकाश फैलने के साथ ही लाज का अँधेरा भी मिट गया। सामने महुए के दो-तीन पेड़ देख पड़े, उसी ओर चला । पहुँचकर छाया में बैठते ही इतनी कलाति बढ़ी कि लेट गया। लेटते ही बेहोश हो गया। “जब जागा, तव दोपहर थी। देह फूल-सी हलकी हा गई थी। इतनी स्वच्छता का उसे कभी अनुभव न हुआ था। शंका आप-की-अप पैदा हुई- --'क्या भगवान नहीं हैं ? "सुना ठीक मस्तक के ऊपर से आवाज आई हैं, हैं।' "तअज्जुब में आ निगाह उठाकर देखा, एक सुग्गा बैठा हुआ फिर 'टे-टें' कर उठा। "संदेह से निगाह हटा ली। फिर शंका हुई, यह सब क्या है ? फिर ऊपर से आवाज़ आई-चित्रकूट, चित्रकूट ।' "मन में उत्तर तैयार हो गया-चित्रकूट है इसका "समास का ज्ञान रामकुमार को था। इस उत्तर के निकलते ही जैसे सारी पृथ्वी उसकी दृष्टि में चक्कर खाने लगी, पेड़ आदि सब घूमने लगे, घूमते-घूमते. धूमिल छाया में बदलते हुए सब श्राकाश में मिलने लगे। अंत में रामकुमार को कहीं कुछ न देख पड़ा ! उसके देह है, यह ज्ञान भी न रहा शरीर निश्चल, आँखें जिष्पलक रह गई। "कुछ देर बाद ज्ञान हुआ। गोस्वामी तुलसीदासजी की