यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०२ लिली तब तक बस्ती छोड़कर दूर निकल जाने को जी करने लगा। वह पयस्विनी की तरफ चला ! रारते में नाला छातीत सरा हुआ मिला । वहाँ उसे मालूम हुआ, पानी जोर का गिरा है। नाला पार कर पथस्विनी के तट पर गया, तो पानी के मारे सब घाट डूब गए थे। नदी का रूप भयंकर हो रहा था । जहाँ भादमी चलते थे, वहाँ कहीं कहीं छाती से ज्यादा पानी था। यह देखकर अजाने एक दूसरे रास्ते से चलकर सीतापुर के भीतर पैठा। जल्द-जल्द यस्ती के बाहर जा रहा था । ऊषा के वीण प्रकाश से अँधेरा हट चला। अभी तक लोग जगेन थे। कुछ दूर जाने पर ब्राह्ममुहूर्त में उठनेवाले एक यज्ञ.पवीतधारी ब्राह्मण मिले । ब्राह्मण देवता को देखकर वामकुमार ने करुण कठ से प्रार्थना की-'आप अपना गमछा मुझे दे दीजिए ! यहाँ बरती है। ब्राह्मण गला फाड़कर पुकार उठे-'चोर है! पुलिस-पुलिस !' रामकुमार धोर पद चल दिया। लोगों ने निकलकर देखा, प्रशांत अविचल नग्न युवक-साधु चला जा रहा है-उसकी चाल में चोर के लक्षण नहीं । ब्राह्मण ने कहा, 'यह मुझसे अंगोछा माँग रहा था। लोगों ने कहा, 'मूर्ख, बस्ती के विचार से साधु ने ऐसा कहा होगा, तेरा एक अंगोछा लेकर वह क्या करेंगे ? तूने बड़ा धोका खाया, डेढ़ गज कपड़े के तुझे थानों मिलते।' "धीरे-धीरे रामकुमार बस्ती पार कर गया। जिधर निगाह जाती है, लक्ष्य-हीन उसी तरफ चला गया। दुःख, ग्लानि, होम,