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लिली

कहा--"चलो, पद्मा छत पर है, बैठो मैं अभी आती हूँ।"

राजेंद्र जज का लड़का है, पद्मा से तीन साल बड़ा, पढ़ाई में भी। पद्मा अपराजिता बड़ी-बड़ी आँखों की उत्सुकता से प्रतीक्षा में थी, जब से छत से उसने देखा था।

"आइए, राजेन बाबू, कुशल तो है?" पद्मा ने राजेंद्र का उठकर स्वागत किया। एक कुर्सी की तरफ़ बैठने के लिये हाथ से इंगित कर खड़ी रही। राजेंद्र बैठ गया, पद्मा भी बैठ गई।

राजेन, तुम उदास हो!" "तुम्हारा विवाह हो रहा है?" राजेंद्र ने पूछा। पद्मा उठकर खड़ी हो गई। बढ़कर राजेंद्र का हाथ पकड़कर बोली--"राजेन, तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं। जो प्रतिज्ञा मैंने की है, हिमालय की तरह उस पर अटल रहूँगी।"

पद्मा अपनी कुर्सी पर बैठ गई। मैगज़ीन खोल उसी तरह पन्नो में नज़र गड़ा दी। जीने से आहट मालूम दी।

माता निगरानी की निगाह से देखती हुई आ रही थीं। प्रकृति स्तब्ध थी। मन में वैसी ही अन्वेषक चपलता।

"क्यों बेटा, तुम इस साल बी० ए० हो गए?" हँसकर पूछा।

"जी हाँ।" सिर झुकाए हुए राजेंद्र ने उत्तर दिया।

"तुम्हारा विवाह कब तक करेंगे तुम्हारे पिताजी, जानते हो?"