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चतुरसेन की कहानियाँ एक सजे हुए कमरे में हमें बैठा कर, सन्तरी चला गया। उसमें मखमल का हाथ भर मोटा गहा पड़ा था, और साटन के पर्दे दरवाजे पर थे। गद्देदार कुर्सियाँ, कौच और एक से एक बढकर सजावट और तस्वीर, क्या-क्या बयान करूँ ? मैं पाराल-सी बैंठी देख रही थी; हृदय धक् धक् कर रहा था। बोलना चाहा, पर मौसी ने होंठ पर उँगली रखकर संकेत कर दिया। थोड़ी देर में एक पहरेदार ने धीरे से पर्दा उठाकर, हमें अपने पीछे-पीछे आने का संकेत किया। कई बड़े-बड़े दालान, कमरे पार करती हुई अन्त में एक निहायत खुशरङ्ग सजे एक बड़े कमरे में पहुँची। देखा, एक तीस साला उम्र के अत्यन्त रुपाबदार रुप और तेज की खान, एक पुरुष चुपचाप बैठे धुआँ फेंक रहे हैं। मौसी ने जमीन तक झुक कर सलाम किया और मैने भी । हाथ का सिगार एक ओर फेंक कर महाराज उठ खड़े हुए। उन्होंने बड़ी बेतकल्लुफी से मौसी का हाथ पकड़ कर बैठाया, फिर मुस्करा कर मेरा मिजाज पूछा। मैं तो सकते की हालत में थी। मौसी ने फटकार कहा- बेवफ, सरकार मिजाज पूछते हैं और तू चुप है। वे हँस दिए और बोले-हीरा यही है न ? “यही हजूर की कनीज़ है ?" "सच, पर देखना धोखा तो नहीं देती ?" "अय हय हुजूर, मेरी जबान टूट जाय ?" "अच्छा मिस हीरा, क्या तुम सिगरेट पीती हो?" “जी नहीं सरकार!" "अच्छा तब कुछ खाओ-पीभो! इतना कहकर उन्होंने CC