यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चतुरसेन की कहानियाँ "रुपया" "मैं उस पर लात मारती हूँ। "पर तुम्हारी मौसी तो उस पर मरती हैं।" "मैं उससे कहूँगी।" "बेसूद है । "क्या तुमने कहा था ? "मैं एक हजार देने को तैयार हूँ।" "यह क्या थोड़े हैं ? "वे कहती हैं-एक हजार माहवारी आनन्दी की जूतियों का खर्च है। "पर मैं तो अपना शरीर और जान तुम्हें दे चुकी ।" "इसका तुम्हें अधिकार नहीं " मैं रोने लगी, वे चले गए। मैं रात भर रोती रही; मेरी आँखें फूल गई और छाती कटने लगी। सुबह होते ही मौसी ने कहा-“बटी, आज तुझे एक मुजरे पर जाना है, सब सामान तैयार करके लैस हो जाना। जो कहना चाहती थी, न कह सकी। सोचा-लौट कर कहूंगी। । मेरा नाम हीरा है, बस इतना ही समझ लीजिए। मैं और कुछ नहीं बता सकती। समझ लीजिए मैं धरती फोड़ कर पैदा हुई और धरती में समा जाने की इच्छा से जी रही हूँ। हजारों 7