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ड़ी हुई थी, और जिनकी सोने की अम्बारियाँ सुनहरी धूर में थे, जिन में शाहजादी लाला रुख की सहेलियाँ, उस्तानिया, मुगलानियाँ और रिश्ते की दूसरी शाही औरतें थीं। इनके पीछे नकीबों की एक फौज थी, जो चिल्ला-चिल्ला कर हुजूर शाह- जादी की सवारी की आमद लोगों पर जाहिर कर रही थी। इसके बाद खास बान्दियों और महरियों के पैदल झुरमुट में सूरत, मकड़ी के जाले की तरह महात् पद पड़े हुए थे। इनके पीछे घोड़े पर सवार एक सरदार खोजा फिदाहुसन था, उसके पोछे मुगल सरदारों का एक मजबूत दस्ता। इसके बाद रसर, डेरे तम्बू और बल्लियों से लदे हुए बहुत से ऊँट खच्चर तरसते थे। उसका रंग मोतियों के समान था, उसकी आमा निर्दोष थीं। उसका भोलापन और सुकुमारता अप्रतिम थी, लाला रुख चमचमा रही थीं ! इनमें महीन रेशमी जाली के पर्दे पड़े हुए कीमती, जड़ाऊ सुखपाल में शाहजादी लाला रुख बैठी थी। एक विश्वास पात्री बांदी पीछे खड़ी शाहजादी पर धारे-धीरे पंखा मल रही थी ! सुखपाल पर गुलाबी रंग के निहायत खूब- और २ लाला रुख का सौन्दर्य अप्रतिम था, और उसके कोमल तथा भावुक खयालातों की ख्याति देश देशान्तरों तक फैल गई थी। देश देशान्तरों के शाहजादे उसे एक बार देखने को और शरीर की कोमलता केले के नए पत्ते के समान थी। उसके दात हीरे के से, और आँखें कच्चे दूध के समान उज्ज्वल और हाथी तथा बेलदार मजदूर चल रहे थे। ३