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चतुरसेन की कहानियाँ कूता गया था। रजिया ने कहा-"इस कंगन से दादा बाते किया करते थे। यह दादी का कंगन था" मैंने भी उसे एक पूजनीय वस्तु समझा। ५ रजिया का अठारहवाँ साल खत्म हो गया। मैंने उस दिन रजिया को नई साड़ी पहनाई । फूलों का हार पहनाया। उसके बाद वह पुलिन्दा खोला। उसमें कुछ कागजात थे, एक शाही मुहर थी, कुछ फर्मान थे, और एक विवरण पत्र था। उसे पढ़ने पर पता लगा, बूढ़ा सुलतान टीपू का बेटा खिजरस्ताँ था। उसका बेटा रजिया का पिता युद्ध में मारा गया था। सरकार के साथ कुछ ऐसी सन्धियाँ थीं कि रजिया को अठारह वर्ष की होने पर सरकार से उसे एक इलाका, जो उसके बाप का जब्त कर लिया गया था, मिलता। रजिया के जन्म और वंश का प्रमाण रजिया के गले के तावीज़ में था। तावीज़ खोल डाला गया। समय पर सब कागजात हाईकोर्ट में दाखिल कर दिए गए। छ:मास बाद रजिया की जागीर मिल गई। इसकी आमदनी पाँच लाख रुपया सालाना थी। जागीर मिलने पर रज़िया को लेकर मैं इलाके पर चला गया। वहाँ पर दखल वगैरा लेकर, सब व्यवस्था करके जब मैं चलने लगा, तो रजिया ने आँखों में आँसू भर कर, पकड़कर कहा-"अब जाओगे कहाँ" मैंने कहा-"रज़िया रानी, अब "बड़े भाई न कहोगी" मेरा हाथ ७४