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खुदा राह पर भैने जबान दी। बूढ़े ने फिर कहा- मेरे बाद रजिया यहाँ न रह सकेगी। उसे तुम जहाँ मुनासिब समझो, रखना, परन्तु अपनी हिफाजत से दूर नहीं। मगर यहाँ से निकलकर और मेरे बाद वह फकीरी हालत में न रह सकेगी!" बूढ़े ने एक जड़ाऊ कंगन निकालकर दिया, और कहा- "इसे बेचकर मेरी रजिया को आराम से रहने का बन्दावस्त कर देना।" बूढ़ा कुछ देर चुप रहा। वह अपने हृदय में उबलते हुए तूफान को शांत कर रहा था। कुछ ठहर कर उसने मुझे और रजिया को पास बुलाकर, दोनों के हाथ पकड़ अपनी छाती पर रखकर कहा-"मेरे मिहरबान, तुम हिन्दू हो और जिया मुसलमान, मगर खुदा की नजर में दोनों इंसान हैं। मैं उम्मीद करता हूँ, तुम रजिया के लिए कभी बेफिक्र न होगे।" कुछ ठहर कर कहा-"मेरे बच्चो, तुम लोग अपना नफा नुक- सान सोच लेना" हम दोनों सिर झुकाए बूढ़े की टूटी चारपाई के पास बैठे रहे । कुछ देर बाद बूढ़े ने कहा- "बड़े भाई, अब तुम रजिया को लेकर चले जाओ। मेरा वक्त नजदीक है, मेरो मिट्टो सर- कार के आदमी सँगवाँ देंगे।" वह जोश में हाँफने लगा। हम लोगों ने उसकी कुछ न सुनी। हम वहीं डटे रहे। तोन दिन बाद उसकी मृत्यु हुई। - रजिया मेरे घर रहने लगी। मेरी बूढ़ी मौसी देहात में रहती थी। उसे मैंने बुलाकर घर में रख लिया था। सुविधा के ख्याल से मैंने रजिया का नाम कमला रख लिया था। मैंने वह कंगन बेचा नहीं। उसका मूल्य बीस हजार से भी अधिक 1