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चतुरसेन की कहानियाँ क्षण-मर महावतखाँ चुप रहे, और फिर उन्होंने एक लम्बी साँस ली। उनके मुंह से निकला--"जहाँपनाह की जैसी मर्जी इसके बाद महावतखाँ तीर की भाँति खेमे से बाहर निकल गया, और दोनों प्रेमी परस्पर पाश-बद्ध होकर रोने लगे। क्या थे प्रतापी सन्नाट और दर्प-मूर्ति साम्राज्ञो थे! - आज बादशाह हाथी पर सवार होकर शिकार करने निकले हैं। महावतखाँ का कड़ा पहरा बादशाह पर है। बादशाह की जिद से मलिका भी हाथी पर सवार हो गई है। महावतस्ताँ साथ है। रावी के किनारे-किनारे धीरे-धीरे हाथी बढ़ रहा था, और शौज का एक टुकड़ा धीरे-धीरे पीछे पा रहा था। अचानक चीत्कार करके नूरजहाँ ने कहा-"महावत, हौदा ढीला है, ठीक करो। महावत जल्दी से हाथी की पीठ की ओर चला गया। क्षणभर में नूरजहाँ बिजली की भाँति कूदकर हाथी की गर्दन पर आ बैठी, और जोर से अंकुश का एक वार करके हाथी को नदी में हूल दिया। क्षण भर में ही देखते- देखते यह सब कौतुक हो गया। जब तक महाबतखाँ दौड़े, तब तक हाथी दरिया में पहुँच चुका था। बादशाह ने विस्मित होकर नूरजहाँ के साहस को सराहा। नूरजहाँ ने हद स्वर से कहा- “जहाँपनाह, बेखौफ बैठे रहें।" हाथी सकुशल दरिया पार उतर आया। नूरजहाँ भूल गई