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+ चतुरसेन की कहानियाँ नूरजहाँ ने क्रोध से काँपते हुए कहा- "इन्साफ करना और हुक्म करना मेरा काम है, तुम्हारा काम हुक्म मानना है तुम नौकर हो।" "मलिका साहिबा, महावत खाँ इस हुक्म को मानने से इनकार करता है। नूरजहाँ ने तख्त से उठते हुए कहा-"तुम्हारी इतनी मजाल ! कोई है, महावतखाँ को गिरफ्तार कर लो। महावत खाँ ने स्थिर-गंभीर स्वर से कहा-"मालिका साहबा, बीस साल से मैं इन सिपाहियों का सिपहसालार हूँ। इन्हें मैं अगणित बार युद्ध के मैदान में ले गया हूँ, और फतह का सेहरा इनके सिर पर बाँधकर ले आया हूँ। कितनी बार इन्होंने जाने देकर मेरी हिफाजत की है, अब इनकी इतनी जुरत नहीं हो सकती कि मुझे गिरफ्तार करें। हाँ बादशाह सलामत, आपके सामने यह सिर और हाथ हाज़िर है, बाँधिए या कल काजिए।" यह कहकर महावतखाँ ने बादशाह के सामने हाथ बढ़ा दिए। बादशाह ने कहा-"महाबतखाँ, तुम्हारे बाँधने की जंजीर अभी नहीं तैयार हुई। जाओ, हम तुम्हें मान करते हैं। और शाहजादा, तुम्हें भी हम माफ़ी बख्शते हैं, जाओ।" यह कहकर बादशाह उठ खड़े हुए। नूरजहाँ पैर से कुचली हुई नागिन की भाँति फुफकारती रह गई। ३ "मैं महावत से जरूर कैफियत तलब करूंगी।" "नूरजहाँ, वह कैफियत नहीं देगा।"