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n चतुरसेन की कहानियाँ कर, या अत्र कर-जहाँ जाग्रत पीर शेख सलीम की उज्ज्वल समाधि है और बादशाह अकबर की भांति जिस समाधि पर आज भी सहस्रों नर नारी पुत्र की भीख माँगने जाते हैं। जहाँ जीनी जागनी सुन्दरियों को गोट बनाकर शतरंज खेली जाती थी। जहाँ एक स्त्रम्भ के आधार पर टिके हुए भवन में बैठ कर सम्राट अकबर तत्कालीन विद्वानों के साथ मनुष्यों के धर्म भाव की एकता पर गम्भोर विचार किया करता था। जहाँ जोधाबाई ने मुगल हरम में राधामाधव की मूर्ति स्थापित की थी, जहाँ विश्व विम्यान वीरवल, नानखाना रहाम, विद्वान जी बन्धु और कट्टर मुल्ला अब्दुल कादिर उस बड़े मुग़ल के चरणों में बैठ कर भारत के साम्राज्य की व्यवस्था करते थे; तलवार और कलम से और जहाँ तानसेन और बैजू बावरे ने अपनी तान से वायु मण्डल का पुल कत किया था। इस समय हम उसी महानगरी की चर्चा करते हैं। उसका नाम फतहपुर सीकरी है। आगरा तब एक छोटा सा गॉव जमुना तट पर था। वहाँ न ताज था न सिकन्दरा, न किनारी बाजार था, न भव्य किला। जब दोपहर की तेज धूप में तपी लुएं धूल के बवंडर को लेकर साँयसाँय आवाज करती उठती थीं, तब आगरे की फूस की झोपड़ियाँ हिल उठती थीं ! उस समय फतहपुर सोकरा में एक से एक बढ़ कर प्रसाद निर्माण हो रहे थे और बड़ी-बड़ी विभूतियाँ बहाँ एकत्रित हो रही थीं। वहाँ प्रबल प्रतापी मुग़ल साम्राज्य का निर्माण हो रहा था! परन्तु हमारा वर्णन तो और आगे चलता है। सम्राट अकबर ही ने अपनी उस राजधानी को अधूरी छोड़ कर आगरे को राजधानी बना लिया था। और जब सम्राट अकबर अपने