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चतुरसेन की कहानियाँ इलाहीबखश जमीन पर गिर कर शाहजादी का पल्ला चूम कर बोले-शाहजादी, माफ करना ! मैं नमकहराम हूँ। 'मैं जानती हूँ ! मगर हुजूर, यह तो बहुत छोटा कसूर है। क्या हुजूर यह नहीं जानते कि औरतें दिल और मुहब्बत को सलानन से बहुत बड़ी चीजें समझती हैं ? क्या आप यकीन करेंगे कि १२ साल तक मैं आपकी उस जमीन में घायल तड़- पती, सूरत को आँखों में बसा कर जीती रही। जो कुछ बन एका, बाबाजान से कह कर किया। मैं जानती थी कि मिलन सकूँगी, मगर अापको दुनिया में एक रुतवा देने की हरस थी- वह पूरी हुई। इलाहाबखश पागल की तरह मुँह फाड़ कर सुन रहे थे। शाहजादी ने कहा-जब बाबाजान ने आपकी दगा ओर अगरेजों से आपके मिल जाने का हाल कहा, तो दिल टूट गया। मगर उस दिन से अब काम ही क्या ? वह टूटे या साबूत रहें, आखिर अनहोनी तो हो गई~~-एक बार फिर मुला- कात हो गई। जहे किस्मत ! इलाहीबख़्श भागे। वे चुपचाप घर से निकले। नौकर- चाकर देख रहे थे। उसके बाद किसी ने फिर उन्हें नहीं देखा ! ।